जब बच्चों के हक़ पर ही सवाल खड़े होने लगें, तो समाज का विश्वास डगमगाने लगता है। आज प्रदेश और ज़िले में ऐसे कई उदाहरण सामने आ रहे हैं जहाँ कुछ शिक्षक शासन और सरकार के दिशा-निर्देशों की खुली अवहेलना कर रहे हैं। स्कूल, जो कभी अनुशासन और नैतिक मूल्यों की पाठशाला थे, आज कुछ जगहों पर शंका के केंद्र बनते जा रहे हैं।
गुरु-शिष्य परंपरा को ठेस पहुंचाने वाली घटनाएँ सामने आ रही हैं, जो शिक्षा के मूल्यों को चोट पहुंचाती हैं। चित्तौड़गढ़ ज़िले के गंगरार क्षेत्र की घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया, लेकिन दुर्भाग्य से इस प्रकार की घटनाएँ रुकने की बजाय निरंतर सामने आ रही हैं। यह एक गंभीर चिंता का विषय है।
प्रदेश के शिक्षा मंत्री श्री मदन दिलावर के निर्देशों के बावजूद कुछ लोग स्कूली वातावरण को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। पढ़ाई के समय मोबाइल पर व्यस्त रहना, निजी कार्यों में लिप्त रहना, और अनुशासनहीनता – यह सब उन बच्चों के साथ अन्याय है, जिनका भविष्य इन शिक्षकों पर निर्भर करता है।
कुछ विद्यालयों में पूरे स्टाफ की मौजूदगी के बावजूद शिक्षण कार्य की ज़िम्मेदारी संविदा कर्मियों के भरोसे छोड़ दी जाती है। परिणामस्वरूप स्कूलों का नामांकन घटता जा रहा है। कुछ संस्थानों का माहौल, शिक्षा के मंदिर की बजाय धर्मशाला या गौशाला जैसा हो गया है।
ग्राम स्तरीय राजनीति और भेदभाव पूर्ण सोच के कारण बच्चों का भविष्य खतरे में है। पोषाहार, खेल सामग्री, और अन्य सुविधाएं भी कई बार संदिग्ध स्थिति में पाई जाती हैं। स्कूल परिसर में शौचालय निर्माण और उनके प्रयोग की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
विद्यालय विकास समितियों के आय-व्यय का पारदर्शी भौतिक सत्यापन ज़रूरी है। यह सुनिश्चित करना शिक्षा विभाग की ज़िम्मेदारी है कि कोई भी व्यक्ति शिक्षा के पवित्र वातावरण को दूषित न करे।
कुछ स्थानों पर शिक्षा से जुड़ी राजनीति, संगठनात्मक गुटबाजी और कथित भ्रष्टाचार ने व्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुँचाया है। जहाजपुर ब्लॉक में हाल की दूध के पैकेट चोरी की घटना इसकी एक झलक मात्र है।
ऐसे हालात में ज़रूरत है कि सरकार और प्रशासन बिना पक्षपात के सख्त कार्रवाई करें। जिन व्यक्तियों की गतिविधियाँ शिक्षा के खिलाफ हैं, उन्हें चिन्हित कर कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए, ताकि असली शिक्षक वर्ग की गरिमा और बच्चों के अधिकार सुरक्षित रह सकें।
हमारा निवेदन है कि अंत्योदय की भावना के साथ सरकार शिक्षा के मंदिरों की गरिमा को बचाने हेतु ठोस कदम उठाए।
✍️ दयाराम दिव्य
प्रधान संपादक
द मूवमेंट ऑफ इंडिया
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