
भीलवाड़ा — जिले में मेडिकल माफियाओं का जाल लगातार फैलता जा रहा है। खुद को भोला-भाला श्रद्धालु बताकर ये लोग वर्षों से घोटाले और घपले करते आ रहे हैं। चाहे सरकार बदले या अफसर, इन माफियाओं के हौसले बुलंद ही रहते हैं। महात्मा गांधी अस्पताल जैसे संस्थान में मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है, और नकली दवाओं की आपूर्ति के मामले ने पूरे तंत्र को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है।नकली फार्मेसी से लेकर दलाली तक: गांधी जी के तीन बंदरों की तस्वीर उभरतीअस्पताल में स्थित फार्मेसी पर सवाल खड़े हो चुके हैं। फर्जी लाइसेंस, अमान्य दवाएं, और दलालों की सक्रियता ने चिकित्सा व्यवस्था को बीमार कर दिया है। जिस जगह गांधीजी के आदर्शों की प्रतिध्वनि होनी चाहिए थी, वहां “दलाल, हलाल, कलाल” का खेल खेला जा रहा है।सहकारी उपभोक्ता भंडार भी सवालों के घेरे मेंपहले भी सहकारी उपभोक्ता भंडार की घटिया निर्माण सामग्री और संचालकों की मनमानी जनता की नजर में आ चुकी है। लेकिन सत्ता और प्रशासनिक गठजोड़ ने हमेशा मामले को दबाने की कोशिश की। शासन-प्रशासन और कथित जनप्रतिनिधि माफियाओं के संरक्षण में दिखाई दे रहे हैं।संविदा कर्मियों के सहारे धांधली का खेलसंविदा पर कार्यरत कर्मचारियों के ज़रिए नियमों को दरकिनार कर सरकारी संसाधनों की लूट हो रही है। ना जांच, ना जवाबदेही — नतीजा है मरीजों की मौत और चिकित्सा व्यवस्था में जनता का टूटता भरोसा।”
कानून के हाथ लंबे हैं” —
दैनिक The Movement of India के प्रधान संपादक दयाराम दिव्य ने इस पूरे प्रकरण पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:> “सरकारें आएं या जाएं, लेकिन मेडिकल माफिया जनता की जिंदगी से खेलते रहेंगे — यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कानून के हाथ लंबे हैं, और अब इन सफेदपोश घोटालेबाजों को जवाब देना होगा। भगवान शनि न्याय के देवता हैं और जनता की पुकार अब अंधेरे से बाहर आ रही है।
जय संविधान! सत्यमेव जयते!जनता को अब जागरूक होना होगा, क्योंकि जब दवा ही बीमारी बन जाए — तब खामोशी सबसे बड़ा अपराध बन जाती है।
